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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की चिरनिद्रा से जागते हैं। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 25 तारीख को है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जागने के बाद श्री हरि सर्वप्रथम हरिवल्लभा की सुनते हैं। भगवान विष्णु के जागने के बाद सबसे पहले जल के साथ उन्हें तुलसी दी जाती है। तुलसी की मंजरी के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और भगवान विष्णु के विग्रह स्वरुप शालिग्राम के विवाह का प्रावधान है। आप घर में भी तुलसी का विवाह कर सकते हैं। जानते हैं शालीग्राम और तुलसी के विवाह की आसान विधि...
सबसे पहले साफ-सफाई करने के पशचात घर के आंगन या फिर पूजाघर में एक लकड़ी के पाटे पर तुलसी का पौधा रखें। उसके बाद तुलसी माता को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं। गमले के ऊपर गन्ने से मंडप सजाएं। माता तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम को विराजमान करें। तुलसी को सुहाग का सामान अर्पित करें। दूध में हल्दी भिगोकर तुलसी और भगवान शालिग्राम को लगाएं। मंडप पर ही हल्दी का हाथ लगाएं। उसके बाद विधिवत पूजन करें। ध्यान रखें की शालीग्राम भगवान को चावल अर्पित नहीं किए जाते हैं। उन्हें तिल अर्पित करें।
- कर्पूर जलाकर तुलसी माता की आरती करें। उसके बाद प्रसाद अर्पित करें। तुलसी माता की ग्यारह परिक्रमा करें। प्रसाद अर्पित करने के पश्चात स्वयं ग्रहण करें और सभी में प्रसाद अवश्य वितरीत करें।
- आंवला भगवान विष्णु का प्रिय है, इसलिए चढ़ाने के लिए आंवला भी लेकर आएं। इसके साथ ही इस दिन से कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन आंरभ किया जाता है, इसलिए मूली, बेर भाजी आदि भी लेकर आएं।
- हिंदू धर्म में विवाह के समय मंगलाष्टक पढ़ा जाता है इसलिए अगर आप मंगलाष्टक पढ़ सकते हैं तो अवश्य पढ़ें।
- सारी पूजा के संपन्न होने के पश्चात घर के सदस्य लकड़ी के पाटे को चारों ओर से आराम से उठाएं और नारायण को जगाने के लिए इस प्रकार से आवाह्न करें। ''उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा''।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की चिरनिद्रा से जागते हैं। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 25 तारीख को है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जागने के बाद श्री हरि सर्वप्रथम हरिवल्लभा की सुनते हैं। भगवान विष्णु के जागने के बाद सबसे पहले जल के साथ उन्हें तुलसी दी जाती है। तुलसी की मंजरी के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और भगवान विष्णु के विग्रह स्वरुप शालिग्राम के विवाह का प्रावधान है। आप घर में भी तुलसी का विवाह कर सकते हैं। जानते हैं शालीग्राम और तुलसी के विवाह की आसान विधि...
सबसे पहले साफ-सफाई करने के पशचात घर के आंगन या फिर पूजाघर में एक लकड़ी के पाटे पर तुलसी का पौधा रखें। उसके बाद तुलसी माता को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं। गमले के ऊपर गन्ने से मंडप सजाएं। माता तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम को विराजमान करें। तुलसी को सुहाग का सामान अर्पित करें। दूध में हल्दी भिगोकर तुलसी और भगवान शालिग्राम को लगाएं। मंडप पर ही हल्दी का हाथ लगाएं। उसके बाद विधिवत पूजन करें। ध्यान रखें की शालीग्राम भगवान को चावल अर्पित नहीं किए जाते हैं। उन्हें तिल अर्पित करें।
- कर्पूर जलाकर तुलसी माता की आरती करें। उसके बाद प्रसाद अर्पित करें। तुलसी माता की ग्यारह परिक्रमा करें। प्रसाद अर्पित करने के पश्चात स्वयं ग्रहण करें और सभी में प्रसाद अवश्य वितरीत करें।
- आंवला भगवान विष्णु का प्रिय है, इसलिए चढ़ाने के लिए आंवला भी लेकर आएं। इसके साथ ही इस दिन से कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन आंरभ किया जाता है, इसलिए मूली, बेर भाजी आदि भी लेकर आएं।
- हिंदू धर्म में विवाह के समय मंगलाष्टक पढ़ा जाता है इसलिए अगर आप मंगलाष्टक पढ़ सकते हैं तो अवश्य पढ़ें।
- सारी पूजा के संपन्न होने के पश्चात घर के सदस्य लकड़ी के पाटे को चारों ओर से आराम से उठाएं और नारायण को जगाने के लिए इस प्रकार से आवाह्न करें। ''उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा''।