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माघ माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी (छठी) तिथि को शीतला षष्ठी का व्रत किया जाता है। इस बार शीतला षष्ठी व्रत 3 फरवरी 2021 को पड़ रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला षष्ठी का व्रत करने से दैहिक और दैविक ताप से मुक्ति प्राप्त होती है। माना जाता है कि पुत्र की इच्छा रखने वालों के लिए यह व्रत बहुत शुभफलदायी रहता है। इस व्रत को मुख्य रूप से स्त्रियों के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत और शीतला माता का पूजन करने से चेचक रोग से भी बचाव होता है। शीतला षष्ठी तिथि को घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है, सभी परिवारजन बासी ठंडा भोजन करते हैं। व्रत में चढ़ाए जाने वाला भोग जैसे रावड़ी, हलवा, पूरी और गुलगुले आदि रात को ही बनाकर तैयार कर लिए जाते हैं। माता शीतला को शीतल चीजें पसंद हैं इसलिए उन्हें भी ठंडा भोग ही लगाया जाता है। इस दिन गर्म पानी से स्नान करना भी वर्जित माना गया है। व्रत रखने वाले को शीतल जल से ही स्नान करना चाहिए। शीतला माता की विधिवत् पूजा करने के पश्चात शीतला षष्ठी की कथा भी अवश्य पढ़नी चाहिए। तो चलिए जानते हैं शीतला षष्ठी व्रत की कथा।
एक समय की बात है कि एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। सभी का विवाह हो चुका था, परंतु ब्राह्मण के सातो बेटों की कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी की बहुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने के बारे में बताया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक अपनी बहुओं से व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई। इसके बाद एक दिन ब्राह्मणी और उसकी पुत्र-वधुओं ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। ताजा गर्म भोजन किया। रात्रि में ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंककर उठ बैठी, जिसके बाद उसने अपने पति को जगाया, परंतु उसकी मृत्यु हो चुकी थी। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी,
इसके बाद वह अपने पुत्रों तथा वधुओं की ओर बढ़ी तो देखती है कि उन सभी की मृत्यु हो चुकी है। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। आवाज सुनकर पड़ोसी जाग गये। तब उनमें से किसी एक ने कहा कि ''यह सब भगवती शीतला के प्रकोप के कारण हुआ है। ये सुनते ही ब्राह्मणी रोती-चिल्लाती हुई वन की ओर चल दी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी। वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल माता शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। तब ब्राह्मणी ने तुरंत ही दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। जिससे उनके शरीर की ज्वाला शांत हो गई। जब ब्राह्मणी को पता चला कि उसी के कारण यह सब हुआ है तो उसे अपने किए पर बहुत पश्चाताप हुआ। जिसके बाद उसने माता से अपने परिवार को जीवित करने की विनती की। माता शीतला ने परिवार के सभी सदस्यों पर दही का लेप करने को कहा। ब्रह्माणी ने ऐसा किया। माता शीतला की कृपा से उसके परिवार के सभी सदस्य जीवित हो उठे।
माघ माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी (छठी) तिथि को शीतला षष्ठी का व्रत किया जाता है। इस बार शीतला षष्ठी व्रत 3 फरवरी 2021 को पड़ रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला षष्ठी का व्रत करने से दैहिक और दैविक ताप से मुक्ति प्राप्त होती है। माना जाता है कि पुत्र की इच्छा रखने वालों के लिए यह व्रत बहुत शुभफलदायी रहता है। इस व्रत को मुख्य रूप से स्त्रियों के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत और शीतला माता का पूजन करने से चेचक रोग से भी बचाव होता है। शीतला षष्ठी तिथि को घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है, सभी परिवारजन बासी ठंडा भोजन करते हैं। व्रत में चढ़ाए जाने वाला भोग जैसे रावड़ी, हलवा, पूरी और गुलगुले आदि रात को ही बनाकर तैयार कर लिए जाते हैं। माता शीतला को शीतल चीजें पसंद हैं इसलिए उन्हें भी ठंडा भोग ही लगाया जाता है। इस दिन गर्म पानी से स्नान करना भी वर्जित माना गया है। व्रत रखने वाले को शीतल जल से ही स्नान करना चाहिए। शीतला माता की विधिवत् पूजा करने के पश्चात शीतला षष्ठी की कथा भी अवश्य पढ़नी चाहिए। तो चलिए जानते हैं शीतला षष्ठी व्रत की कथा।
एक समय की बात है कि एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। सभी का विवाह हो चुका था, परंतु ब्राह्मण के सातो बेटों की कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी की बहुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने के बारे में बताया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक अपनी बहुओं से व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई। इसके बाद एक दिन ब्राह्मणी और उसकी पुत्र-वधुओं ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। ताजा गर्म भोजन किया। रात्रि में ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंककर उठ बैठी, जिसके बाद उसने अपने पति को जगाया, परंतु उसकी मृत्यु हो चुकी थी। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी,
इसके बाद वह अपने पुत्रों तथा वधुओं की ओर बढ़ी तो देखती है कि उन सभी की मृत्यु हो चुकी है। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। आवाज सुनकर पड़ोसी जाग गये। तब उनमें से किसी एक ने कहा कि ''यह सब भगवती शीतला के प्रकोप के कारण हुआ है। ये सुनते ही ब्राह्मणी रोती-चिल्लाती हुई वन की ओर चल दी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी। वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल माता शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। तब ब्राह्मणी ने तुरंत ही दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। जिससे उनके शरीर की ज्वाला शांत हो गई। जब ब्राह्मणी को पता चला कि उसी के कारण यह सब हुआ है तो उसे अपने किए पर बहुत पश्चाताप हुआ। जिसके बाद उसने माता से अपने परिवार को जीवित करने की विनती की। माता शीतला ने परिवार के सभी सदस्यों पर दही का लेप करने को कहा। ब्रह्माणी ने ऐसा किया। माता शीतला की कृपा से उसके परिवार के सभी सदस्य जीवित हो उठे।