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कांग्रेस घास, दूब, कांस, मोथा और लैंटाना। यह घास खेती के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं। मथुरा समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में भूमि की उर्वरा शक्ति को तेजी के साथ कम कर रही हैं।
बंजर जमीन का रकबा बढ़ रहा है। खेतों में पौधों की बढ़वार को भी यह खरपतवार रोक रहा है। अब प्रदेश सरकार इन खरपतवारों के सफाए को प्लानिंग कर रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासकर यमुना और गंगा नदी के किनारे वाले इलाकों में यह खरपतवार तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। कांग्रेस घास पहले कभी रेलवे लाइन और सड़कों के किनारे देखने को मिलती थी,
लेकिन अब खेतों के आसपास इस घास का पहुंच जाना कृषि वैज्ञानिकों को भी बेचैन कर रहा है। जानकारों का कहना है कि यदि इन खरपतवारों को समय से नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले वक्त में खेती करना मुश्किल हो जाएगा।
कांग्रेस घास का पौधा एक से डेढ़ मीटर तक लंबाई पकड़ लेता है। यह पौधा जहां होगा वहां अपनी जड़ के आसपास के इलाके के भी पोषक तत्व समाप्त कर देता है।
इस पौधे के आसपास कोई दूसरा पौधा तैयार नहीं हो सकता। मथुरा और समूचे ब्रज में कांग्रेस घास बड़ी तेजी के साथ पनप रही है। रेलवे लाइनों के किनारे जहां भी खेत हैं वहां तक पहुंच चुकी है।
दूब घास की जड़ें बहुत तेजी के साथ फैलती हैं। आमतौर पर पहले खेतों की मेड़ पर होती थी, लेकिन अब खेतों तक पहुंच गई है। इसके बीजों से भी पौधे बनते जाते हैं।
स्थिति यह है कि जमीन के पोषक तत्वों को बड़ी तेजी के साथ खत्म कर देती है यह घास। इसे खत्म करना भी किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है।
कांस एक खतरनाक खरपतवार है। कांस की जड़ें बहुत गहरी होती हैं। जहां भी उगता है उसके आसपास अपनी जड़ों का पूरा जाल बिछा लेता है।
जमीन से नमी और पोषक तत्वों को बड़ी तेजी के साथ चूस लेता है। आमतौर पर नदियों के किनारे वाले खेतों में कांस ज्यादातर होता है। यह भी फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहा है।
मोथा यह जमीन के अंदर की नमी को सोख लेता है। आसपास जो भी फसल या पौधा होता है उसकी जड़ों की वृद्धि को भी मोथा रोक देता है।
खासकर मक्का, अरहर और ज्वार की फसल के लिए मोथा नुकसानदायक होता है। कई बार खेतों की जुताई के बाद भी इसके बीज छूट जाते हैं, जो फसल की बुवाई पर दोबारा से पैदा हो जाते हैं।
कृषि विभाग के अधिकारी डा. यतेंद्र सिंह का कहना है कि खरपतवारनाशी जो भी रसायन हैं उस पर सरकार अनुदान दे रही है। किसानों को बताया भी जाता है कि किस तरह से इन खरपतवार को समाप्त किया जा सकता है।
कृषि विभाग के अफसरों का कहना है कि दस से पंद्रह फीसदी तक फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं यह खरपतवार।
कांग्रेस घास, दूब, कांस, मोथा और लैंटाना। यह घास खेती के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं। मथुरा समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में भूमि की उर्वरा शक्ति को तेजी के साथ कम कर रही हैं।
बंजर जमीन का रकबा बढ़ रहा है। खेतों में पौधों की बढ़वार को भी यह खरपतवार रोक रहा है। अब प्रदेश सरकार इन खरपतवारों के सफाए को प्लानिंग कर रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासकर यमुना और गंगा नदी के किनारे वाले इलाकों में यह खरपतवार तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। कांग्रेस घास पहले कभी रेलवे लाइन और सड़कों के किनारे देखने को मिलती थी,
लेकिन अब खेतों के आसपास इस घास का पहुंच जाना कृषि वैज्ञानिकों को भी बेचैन कर रहा है। जानकारों का कहना है कि यदि इन खरपतवारों को समय से नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले वक्त में खेती करना मुश्किल हो जाएगा।
कांग्रेस घास का पौधा एक से डेढ़ मीटर तक लंबाई पकड़ लेता है। यह पौधा जहां होगा वहां अपनी जड़ के आसपास के इलाके के भी पोषक तत्व समाप्त कर देता है।
इस पौधे के आसपास कोई दूसरा पौधा तैयार नहीं हो सकता। मथुरा और समूचे ब्रज में कांग्रेस घास बड़ी तेजी के साथ पनप रही है। रेलवे लाइनों के किनारे जहां भी खेत हैं वहां तक पहुंच चुकी है।
दूब घास की जड़ें बहुत तेजी के साथ फैलती हैं। आमतौर पर पहले खेतों की मेड़ पर होती थी, लेकिन अब खेतों तक पहुंच गई है। इसके बीजों से भी पौधे बनते जाते हैं।
स्थिति यह है कि जमीन के पोषक तत्वों को बड़ी तेजी के साथ खत्म कर देती है यह घास। इसे खत्म करना भी किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है।
बिछा लेती है जाल
कांस एक खतरनाक खरपतवार है। कांस की जड़ें बहुत गहरी होती हैं। जहां भी उगता है उसके आसपास अपनी जड़ों का पूरा जाल बिछा लेता है।
जमीन से नमी और पोषक तत्वों को बड़ी तेजी के साथ चूस लेता है। आमतौर पर नदियों के किनारे वाले खेतों में कांस ज्यादातर होता है। यह भी फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहा है।
मोथा यह जमीन के अंदर की नमी को सोख लेता है। आसपास जो भी फसल या पौधा होता है उसकी जड़ों की वृद्धि को भी मोथा रोक देता है।
दिया जा रहा अनुदान
खासकर मक्का, अरहर और ज्वार की फसल के लिए मोथा नुकसानदायक होता है। कई बार खेतों की जुताई के बाद भी इसके बीज छूट जाते हैं, जो फसल की बुवाई पर दोबारा से पैदा हो जाते हैं।
कृषि विभाग के अधिकारी डा. यतेंद्र सिंह का कहना है कि खरपतवारनाशी जो भी रसायन हैं उस पर सरकार अनुदान दे रही है। किसानों को बताया भी जाता है कि किस तरह से इन खरपतवार को समाप्त किया जा सकता है।
कृषि विभाग के अफसरों का कहना है कि दस से पंद्रह फीसदी तक फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं यह खरपतवार।