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मीरापुर में चल रही भागवत कथा के दौरान देवकीनंदन ठाकुर के बयान, ‘बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में न पढ़ाए बल्कि गुरुकुलम में पढ़ाए। कॉन्वेंट स्कूल बच्चों को भारतीय संस्कृति से दूर कर रहे हैं।’ से शहर की महिलाएं सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि कि धर्म संस्कृति सर्वोपरि है, लेकिन बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है। अब स्कूलों में गुरुकुल वाली बात कहां रह गई है। बच्चों का भविष्य बनाना है, हम उन्हें कॉन्वेंट स्कूलों में ही पढ़ाएंगे। इस दौर में बच्चों को कॉन्वेंट में न पढ़ाएं तो कहां पढ़ाएं।
कथा सुनने आईं नैनी की रहने वाली मीनाक्षी पांडेय स्नेहा का कहना है कि उनके बच्चे कान्वेंट में पढ़ रहे हैं आगे भी पढ़ेंगे। देवकी नंदन ठाकुर के बयान पर अमल करें तो बच्चों का भविष्य निश्चित चौपट होगा। वर्तमान में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माहौल नहीं है। यदि कॉन्वेंट के स्तर के गुरुकुलम हों तो विचार करेंगे।
कटरा की रीना सिंह का बेटा बीएचएस में पढ़ रहा है। उन्होंने कहा, आस्था और बच्चों की शिक्षा दोनों के दायरे अलग हैं। वैश्विक ग्राम के जमाने में हम अपने बच्चों को संस्कृत के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं। कीडगंज निवासी रोशनी शर्मा ने कहा स्तरीय गुरुकुल हो तो विचार करेंगे। फिलहाल बच्चों को कॉन्वेंट में ही पढ़ाना मजबूरी है। जहां तक प्रश्न संस्कृति एवं संस्कार का है तो उसे परिवार में ही देने की जरूरत है।
मीरापुर की अंजू मक्कड़ कहती हैं कि गुरुकुलम की अवधारणा सुंदर है पर वास्तविकता में कुछ भी नहीं है। अगर आदर्श गुरुकुलम होते तो हम बच्चों को कॉन्वेंट में क्यों पढ़ाते। पहले दिन से लगातार कथा सुनने आ रहीं मीरापुर की आराधना ने कहा एमएल कॉन्वेंट में बेटी-बेटे को पढ़ा रहे हैं।
कथा प्रवचन सुनकर बच्चों का भविष्य से खिलवाड़ नहीं कर सकते। अंग्रेजी ज्ञान के बगैर इस समय बच्चे कहीं भी खुद स्थापित नहीं कर सकते हैं। मंगलवार को देवकी नंदन ठाकुर की कथा सुनने आईं फाल्गुनी अग्रवाल, अंजू पुरवार, अंजली पांडेय का कहना है कि जमाना अंग्रेजी शिक्षा का है ऐसे में संस्कृत भाषा में शिक्षा दिलाने का क्या औचित्य है। जब तक माहौल में परिवर्तन नहीं होता बच्चों को कॉन्वेंट में ही पढ़ाएंगे।
मीरापुर में चल रही भागवत कथा के दौरान देवकीनंदन ठाकुर के बयान, ‘बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में न पढ़ाए बल्कि गुरुकुलम में पढ़ाए। कॉन्वेंट स्कूल बच्चों को भारतीय संस्कृति से दूर कर रहे हैं।’ से शहर की महिलाएं सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि कि धर्म संस्कृति सर्वोपरि है, लेकिन बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है। अब स्कूलों में गुरुकुल वाली बात कहां रह गई है। बच्चों का भविष्य बनाना है, हम उन्हें कॉन्वेंट स्कूलों में ही पढ़ाएंगे। इस दौर में बच्चों को कॉन्वेंट में न पढ़ाएं तो कहां पढ़ाएं।
कथा सुनने आईं नैनी की रहने वाली मीनाक्षी पांडेय स्नेहा का कहना है कि उनके बच्चे कान्वेंट में पढ़ रहे हैं आगे भी पढ़ेंगे। देवकी नंदन ठाकुर के बयान पर अमल करें तो बच्चों का भविष्य निश्चित चौपट होगा। वर्तमान में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माहौल नहीं है। यदि कॉन्वेंट के स्तर के गुरुकुलम हों तो विचार करेंगे।
कटरा की रीना सिंह का बेटा बीएचएस में पढ़ रहा है। उन्होंने कहा, आस्था और बच्चों की शिक्षा दोनों के दायरे अलग हैं। वैश्विक ग्राम के जमाने में हम अपने बच्चों को संस्कृत के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं। कीडगंज निवासी रोशनी शर्मा ने कहा स्तरीय गुरुकुल हो तो विचार करेंगे। फिलहाल बच्चों को कॉन्वेंट में ही पढ़ाना मजबूरी है। जहां तक प्रश्न संस्कृति एवं संस्कार का है तो उसे परिवार में ही देने की जरूरत है।
मीरापुर की अंजू मक्कड़ कहती हैं कि गुरुकुलम की अवधारणा सुंदर है पर वास्तविकता में कुछ भी नहीं है। अगर आदर्श गुरुकुलम होते तो हम बच्चों को कॉन्वेंट में क्यों पढ़ाते। पहले दिन से लगातार कथा सुनने आ रहीं मीरापुर की आराधना ने कहा एमएल कॉन्वेंट में बेटी-बेटे को पढ़ा रहे हैं।
कथा प्रवचन सुनकर बच्चों का भविष्य से खिलवाड़ नहीं कर सकते। अंग्रेजी ज्ञान के बगैर इस समय बच्चे कहीं भी खुद स्थापित नहीं कर सकते हैं। मंगलवार को देवकी नंदन ठाकुर की कथा सुनने आईं फाल्गुनी अग्रवाल, अंजू पुरवार, अंजली पांडेय का कहना है कि जमाना अंग्रेजी शिक्षा का है ऐसे में संस्कृत भाषा में शिक्षा दिलाने का क्या औचित्य है। जब तक माहौल में परिवर्तन नहीं होता बच्चों को कॉन्वेंट में ही पढ़ाएंगे।