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झांसी।
छुट्टा जानवर न केवल फसलों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं, बल्कि जंगलों में नई पौध के लिए भी खतरा बने हैं। जंगल में पैदा होने वाले पौधे छुट्टा जानवरों के विचरण से मर जा रहे हैं। इसके लिए वन विभाग के पास कोई कारगर योजना नहीं है। हालांकि विभाग के अफसरों का दावा है कि वह छुट्टा जानवरों पर रोक लगाने की कोशिशों में जुटे हैं।
जिले में 26 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल जंगल के लिए संरक्षित है। इसमें से 20 हजार हेक्टेयर पर घना जंगल है, जबकि छह हजार हेक्टेयर में बहुत कम पौधे लगे हैं। यहां के जंगलों में जंगली प्रजाति के पौधे करधई, रेंजा, हिंगोरा और ढाक बहुतायत में हैं। बुंदेलखंड में छुट्टा जानवरों की समस्या है। इस समस्या से न केवल किसान जूझ रहे हैं, बल्कि जंगल भी जूझ रहे हैं। बरसात के सीजन में नए पौधों का जन्म होता है। जंगली पौधों में संघर्ष क्षमता बहुत अधिक होती है, जिससे यह विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को ढाल लेते हैं।
परिस्थितियां विपरीत हों तो पौधों को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन छुट्टा जानवरों की वजह से झुंड के झुंड जंगलों में घूमने से नई पौध बर्बाद हो रही है। जानवरों की रखवाली का कोई न तो विभाग के पास कार्ययोजना है और न ही शासन अथवा प्रशासन इस ओर ध्यान दे रहा है, जिससे जंगलों का विकास बिगड़ रही है। पौधों को जानवरों के खुरों से रौंद दिए जाने के कारण पौधों की फिर से उगने की क्षमता कम होती जा रही है।
भूमि क्षरण हो रहा
जंगलों में जो मिट्टी है, वह बरसात के पानी के साथ लगातार बह रही है, जिससे जमीन का क्षरण हो रहा है। इससे भी जंगलों का क्षेत्रफल कम हो रहा है।
नुकसान रोकने का प्रयास कर रहे
छुट्टा जानवरों से जंगलों को हो रहे नुकसान को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। वन रेंज मऊरानीपुर के कनौटा, कटेरा, कचनेव, बामौर वन रेंज के ककरबई, गुरसराय वन रेंज के जलालपुरा, गुढ़ा और इमलौटा के जंगल में छुट्टा जानवरों को नहीं घुसने दिया जा रहा है। इसके लिए कर्मचारी लगातार निगरानी कर रहे हैं, क्योंकि इसी सीजन में नए पौधे जन्म लेते हैं। प्रयास किया जा रहा है कि छुट्टा जानवर पौधों को नुकसान न पहुंचा सकें।
- एके मालवीय
उप प्रभागीय वनाधिकारी