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जिला जेल में बंद कैदी दीपक पांडेय की फरारी का मामला उलझता जा रहा है। कैदी दीपक जिला अस्पताल नहीं बल्कि अपने घर से फरार हुआ है। मामले में अपनी नौकरी बचाने के लिए जेल अफसर एक के बाद एक झूठ बोलकर फंसते जा रहे हैं। मामले में डिप्टी जेलर से लेकर सदर कोतवाली पुलिस तक पर्दा डालने में जुटी है। ऐसे में जांच कायदे से हो जाए तो कैदी को लेकर आए जेल कर्मियों का फंसना तय है।
कौशाम्बी थाने के हिसामबाद निवासी दीपक पांडेय गांव के ही प्रेमशंकर पांडेय की हत्या के आरोप में बंद था। डिप्टी जेलर से सांठगांठ होने के बाद कैदी को इलाज कराने के बहाने जेल से निकाला गया। सूत्रों की मानें तो एक निजी बोलेरो में डिप्टी जेलर, दो बंदी रक्षक, और एक पक्का (सजायाफ्ता) के साथ दीपक पांडेय को लेकर दोपहर 12 बजे उसके घर पहुंचे। घर पहुंचते ही दीपक ऊपर छत वाले कमरे में पत्नी के पास चला गया और डिप्टी जेलर समेत दोनाें बंदी रक्षक और सजायाफ्ता आवभगत में मस्त हो गए। एक घंटे का समय बीता तो डिप्टी जेलर ने दीपक को चलने के लिए बुलाया। इस दौरान कैदी दीपक भाग निकला तो उसकी पत्नी ने चिल्लाना शुरू कर दिया।
इस नजारे को पूरे गांव ने देखा। कैदी के फरार होने की जानकारी होते ही डिप्टी जेलर, दोनों बंदी रक्षक पसीना-पसीना हो गए। पहले तो चारों लोगों ने कैदी को खुद ढूढ़ने की कोशिश की। जब सुराग लगा पाने में नाकाम हुए तो भागकर मंझनपुर आए। इसके बाद यहां जिला अस्पताल में कैदी के भागने का ड्रामा शुरू हो गया। मामला अफसरों के संज्ञान में पहुंचा तो कार्रवाई शुरू हो गई। इसके बाद दोनों बंदी रक्षकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराकर गिरफ्तारी कराई गई। सूत्रों की मानें तो इस हाईप्रोफाइल ड्रामे में जेल प्रशासन और सदर कोतवाली पुलिस की भूमिका पूरी तरह से संदिग्ध है। क्योंकि जिला अस्पताल में कैदी के इलाज को लेकर ओपीडी के रजिस्टर में कहीं नाम ही नहीं दर्ज है।
कैदी की फरारी के मामले में रचे गए हाईप्रोफाइल ड्रामे में किए जा रहे बचाव के उपाय मामले को और उलझाते जा रहे हैं। किसी की मदद से डिप्टी जेलर ने कैदी के नाम की पर्ची जिला अस्पताल से तो हासिल कर लिया पर ओपीडी रजिस्टर में उसका नाम दर्ज न होना पर्ची की भी पोल खोल रहा है। क्योंकि ओपीडी में तैनात कर्मचारी एक-एक मरीज का नाम, पता और उम्र रजिस्टर में दर्ज करने के बाद ही पर्ची देते हैं। ऐसे में जेलर राजीव कुमार सिंह के पास पहुंची 94854 क्रमांक की पर्ची आखिरकार कहां से आई। यह भी जांच का विषय बन गया है।
बंदी की फरारी मामले में रचे गए हाइप्रोफाइल ड्रामे की पोल डिप्टी जेलर धीरेंद्र कुमार सिंह और दोनों बंदी रक्षकों के मोबाइल की लोकेशन से खुल सकता है। जेलर राजीव कुमार सिंह का कहना है कि बंदी को इलाज के लिए साढ़े ग्यारह से 12 बजे के बीच जिला अस्पताल ले जाया गया था। जबकि इस समय डिप्टी जेलर और बंदी रक्षकों के मोबाइल की लोकेशन कहां थी यदि सर्विलांस के जरिए इसकी चेकिंग करा ली जाए तो कैदी की फरारी के रहस्य से पर्दा उठ जाएगा। ऐसा हुआ तो डिप्टी जेलर भी मामले में बराबर के भागीदार माने जाएंगे।
संयुक्त जिला चिकित्सालय में ओपीडी और इमरजेंसी कक्ष में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है। ऐसे में यदि फरार कैदी दीपक पांडेय को इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया होगा तो उसका फुटेज जिला चिकित्सालय के कैमरों में कैद होना चाहिए। फुटेज देखने के बाद साफ हो जाएगा कि फरार कैदी को उसके घर ले जाया गया था या अस्पताल। फुटेज में कैदी नजर नहीं आया तो क्या बहाना बनाएगा जेल प्रशासन ये सवाल चर्चा का विषय बन गया है।
फरार हुए बंदी के बीमार होने की रिपोर्ट जेल चिकित्सकों ने दी। इस पर उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल भेजवाया गया। अस्पताल में उसे ले जाया गया इसका प्रमाण सदर कोतवाल द्वारा उपलब्ध कराई अस्पताल की पर्ची है। डिप्टी जेलर उसे खोजने के लिए फरारी के बाद गांव पहुंचे थे।
राजीव कुमार सिंह, जेलर
जिला जेल में बंद कैदी दीपक पांडेय की फरारी का मामला उलझता जा रहा है। कैदी दीपक जिला अस्पताल नहीं बल्कि अपने घर से फरार हुआ है। मामले में अपनी नौकरी बचाने के लिए जेल अफसर एक के बाद एक झूठ बोलकर फंसते जा रहे हैं। मामले में डिप्टी जेलर से लेकर सदर कोतवाली पुलिस तक पर्दा डालने में जुटी है। ऐसे में जांच कायदे से हो जाए तो कैदी को लेकर आए जेल कर्मियों का फंसना तय है।
कौशाम्बी थाने के हिसामबाद निवासी दीपक पांडेय गांव के ही प्रेमशंकर पांडेय की हत्या के आरोप में बंद था। डिप्टी जेलर से सांठगांठ होने के बाद कैदी को इलाज कराने के बहाने जेल से निकाला गया। सूत्रों की मानें तो एक निजी बोलेरो में डिप्टी जेलर, दो बंदी रक्षक, और एक पक्का (सजायाफ्ता) के साथ दीपक पांडेय को लेकर दोपहर 12 बजे उसके घर पहुंचे। घर पहुंचते ही दीपक ऊपर छत वाले कमरे में पत्नी के पास चला गया और डिप्टी जेलर समेत दोनाें बंदी रक्षक और सजायाफ्ता आवभगत में मस्त हो गए। एक घंटे का समय बीता तो डिप्टी जेलर ने दीपक को चलने के लिए बुलाया। इस दौरान कैदी दीपक भाग निकला तो उसकी पत्नी ने चिल्लाना शुरू कर दिया।
इस नजारे को पूरे गांव ने देखा। कैदी के फरार होने की जानकारी होते ही डिप्टी जेलर, दोनों बंदी रक्षक पसीना-पसीना हो गए। पहले तो चारों लोगों ने कैदी को खुद ढूढ़ने की कोशिश की। जब सुराग लगा पाने में नाकाम हुए तो भागकर मंझनपुर आए। इसके बाद यहां जिला अस्पताल में कैदी के भागने का ड्रामा शुरू हो गया। मामला अफसरों के संज्ञान में पहुंचा तो कार्रवाई शुरू हो गई। इसके बाद दोनों बंदी रक्षकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराकर गिरफ्तारी कराई गई। सूत्रों की मानें तो इस हाईप्रोफाइल ड्रामे में जेल प्रशासन और सदर कोतवाली पुलिस की भूमिका पूरी तरह से संदिग्ध है। क्योंकि जिला अस्पताल में कैदी के इलाज को लेकर ओपीडी के रजिस्टर में कहीं नाम ही नहीं दर्ज है।
कैदी की फरारी के मामले में रचे गए हाईप्रोफाइल ड्रामे में किए जा रहे बचाव के उपाय मामले को और उलझाते जा रहे हैं। किसी की मदद से डिप्टी जेलर ने कैदी के नाम की पर्ची जिला अस्पताल से तो हासिल कर लिया पर ओपीडी रजिस्टर में उसका नाम दर्ज न होना पर्ची की भी पोल खोल रहा है। क्योंकि ओपीडी में तैनात कर्मचारी एक-एक मरीज का नाम, पता और उम्र रजिस्टर में दर्ज करने के बाद ही पर्ची देते हैं। ऐसे में जेलर राजीव कुमार सिंह के पास पहुंची 94854 क्रमांक की पर्ची आखिरकार कहां से आई। यह भी जांच का विषय बन गया है।
बंदी की फरारी मामले में रचे गए हाइप्रोफाइल ड्रामे की पोल डिप्टी जेलर धीरेंद्र कुमार सिंह और दोनों बंदी रक्षकों के मोबाइल की लोकेशन से खुल सकता है। जेलर राजीव कुमार सिंह का कहना है कि बंदी को इलाज के लिए साढ़े ग्यारह से 12 बजे के बीच जिला अस्पताल ले जाया गया था। जबकि इस समय डिप्टी जेलर और बंदी रक्षकों के मोबाइल की लोकेशन कहां थी यदि सर्विलांस के जरिए इसकी चेकिंग करा ली जाए तो कैदी की फरारी के रहस्य से पर्दा उठ जाएगा। ऐसा हुआ तो डिप्टी जेलर भी मामले में बराबर के भागीदार माने जाएंगे।
संयुक्त जिला चिकित्सालय में ओपीडी और इमरजेंसी कक्ष में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है। ऐसे में यदि फरार कैदी दीपक पांडेय को इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया होगा तो उसका फुटेज जिला चिकित्सालय के कैमरों में कैद होना चाहिए। फुटेज देखने के बाद साफ हो जाएगा कि फरार कैदी को उसके घर ले जाया गया था या अस्पताल। फुटेज में कैदी नजर नहीं आया तो क्या बहाना बनाएगा जेल प्रशासन ये सवाल चर्चा का विषय बन गया है।
फरार हुए बंदी के बीमार होने की रिपोर्ट जेल चिकित्सकों ने दी। इस पर उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल भेजवाया गया। अस्पताल में उसे ले जाया गया इसका प्रमाण सदर कोतवाल द्वारा उपलब्ध कराई अस्पताल की पर्ची है। डिप्टी जेलर उसे खोजने के लिए फरारी के बाद गांव पहुंचे थे।
राजीव कुमार सिंह, जेलर