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यह विधानसभा चुनाव जिले की राजनीति में कई मामलों में महत्वपूर्ण रहा। हार के बावजूद किसी का कॅरियर बन गया तो कई के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न की स्थिति बन रही है। चुनाव परिणामों ने राजनीतिक दलों के स्थानीय नेतृत्व के परिवर्तन की ओर भी इशारा किया है। कुछ लोगों की मुट्ठी से निकलकर भाजपा और सपा की राजनीति अब नये नेतृत्व के हाथ में आ गई है।
ललितपुर सीट पर समाजवादी पार्टी हर बार की तरह इस बार भी दूसरे स्थान पर रही है। लेकिन इस बार सपा को अब तक के इतिहास के सबसे अधिक वोट मिले हैं। ज्योति सिंह लोधी ने 88,687 वोट पाकर खुद को साबित किया। ज्योति को पहले मुख्य मुकाबले में नहीं माना जा रहा था। यहां भाजपा की लड़ाई बसपा से मानी जा रही थी। लेकिन, परिणामों में ज्योति की मेहनत दिखी। उनकी टिकट एक साल पहले तय कर दी गई थी, लेकिन बीच में हुए सपा संग्राम के दौरान उनकी टिकट काटकर चंद्रभूषण सिंह बुंदेला को दे दी गई थी। बाद भी फिर से उन्हें प्रत्याशी बनाया गया था। विपक्षी दलों के साथ-साथ सपा के अंतर्विरोध से जूझते हुए उन्हें मिले वोटों ने पार्टी का नेता बना दिया है।
इस सीट पर सिटिंग विधायक रमेश कुशवाहा का टिकट काटकर बसपा प्रत्याशी बने संतोष कुशवाहा के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है। बसपा का गढ़ माने जाने वाले इस जिले में वह मुख्य मुकाबले में भी नहीं आ सके।
महरौनी के सिटिंग एमएलए फेरनलाल अहिरवार को अपनी ही पार्टी के नेताओं का विरोध झेलना पड़ा। वहीं, कांग्रेस-सपा गठबंधन ने पूर्व बसपा नेता बृजलाल खाबरी को यहां से उतार दिया, जिसका खामियाजा फेरनलाल को भुगतना पड़ा। पार्टी नेताओं का विरोध उन पर सबसे ज्यादा भारी रहा। सबसे ज्यादा नुकसान रमेश खटीक को हुआ। सपा का सिंबल लेकर नामांकन करने वाले रमेश को बीच चुनाव में हटने के निर्देश पार्टी नेतृत्व ने दिए थे, लेकिन वह पार्टी से बगावत करके पूरी ताकत से चुनाव लड़े। रमेश को महज 27 हजार वोट ही मिले। अब ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
यह विधानसभा चुनाव जिले की राजनीति में कई मामलों में महत्वपूर्ण रहा। हार के बावजूद किसी का कॅरियर बन गया तो कई के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न की स्थिति बन रही है। चुनाव परिणामों ने राजनीतिक दलों के स्थानीय नेतृत्व के परिवर्तन की ओर भी इशारा किया है। कुछ लोगों की मुट्ठी से निकलकर भाजपा और सपा की राजनीति अब नये नेतृत्व के हाथ में आ गई है।
ललितपुर सीट पर समाजवादी पार्टी हर बार की तरह इस बार भी दूसरे स्थान पर रही है। लेकिन इस बार सपा को अब तक के इतिहास के सबसे अधिक वोट मिले हैं। ज्योति सिंह लोधी ने 88,687 वोट पाकर खुद को साबित किया। ज्योति को पहले मुख्य मुकाबले में नहीं माना जा रहा था। यहां भाजपा की लड़ाई बसपा से मानी जा रही थी। लेकिन, परिणामों में ज्योति की मेहनत दिखी। उनकी टिकट एक साल पहले तय कर दी गई थी, लेकिन बीच में हुए सपा संग्राम के दौरान उनकी टिकट काटकर चंद्रभूषण सिंह बुंदेला को दे दी गई थी। बाद भी फिर से उन्हें प्रत्याशी बनाया गया था। विपक्षी दलों के साथ-साथ सपा के अंतर्विरोध से जूझते हुए उन्हें मिले वोटों ने पार्टी का नेता बना दिया है।
इस सीट पर सिटिंग विधायक रमेश कुशवाहा का टिकट काटकर बसपा प्रत्याशी बने संतोष कुशवाहा के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है। बसपा का गढ़ माने जाने वाले इस जिले में वह मुख्य मुकाबले में भी नहीं आ सके।
महरौनी के सिटिंग एमएलए फेरनलाल अहिरवार को अपनी ही पार्टी के नेताओं का विरोध झेलना पड़ा। वहीं, कांग्रेस-सपा गठबंधन ने पूर्व बसपा नेता बृजलाल खाबरी को यहां से उतार दिया, जिसका खामियाजा फेरनलाल को भुगतना पड़ा। पार्टी नेताओं का विरोध उन पर सबसे ज्यादा भारी रहा। सबसे ज्यादा नुकसान रमेश खटीक को हुआ। सपा का सिंबल लेकर नामांकन करने वाले रमेश को बीच चुनाव में हटने के निर्देश पार्टी नेतृत्व ने दिए थे, लेकिन वह पार्टी से बगावत करके पूरी ताकत से चुनाव लड़े। रमेश को महज 27 हजार वोट ही मिले। अब ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गई हैं।