भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के 1929 में लाहौर में बाटे गए पंफ्लेट और छोटे भाई कुलतार सिंह को उर्दू भाषा में लिखा गया भगत सिंह का पत्र।
- फोटो : अमर उजाला
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‘उसे फिक्र है हरदम नया तर्जे जफा क्या है, हमें ये शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है’। यह वो शेर है जो शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह ने सेंट्रल जेल लाहौर से अपने छोटे भाई कुलतार सिंह को अंतिम पत्र में लिखा था। उर्दू में लिखे उस पत्र में भगत सिंह ने चार शेर लिखे थे, जिनमें साहस और राष्ट्रप्रेम का संदेश भी दिया था।
सरदार भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह का परिवार सहारनपुर में जैन कॉलेज रोड पर प्रद्युम्ननगर में रहता है। कुलतार सिंह का निधन हो चुका है, अब उनके पुत्र किरणजीत सिंह संधू यहां रहते हैं। सरदार भगत सिंह द्वारा सेंट्रल जेल लाहौर से भेजे उस पत्र की प्रति को आज भी वह सहेजकर रखे हुए हैं। शहीद भगत सिंह की मां विद्यावती भी 1960 के बाद करीब 10 साल तक सहारनपुर में ही रही थीं।
किरणजीत सिंह संधू ने बताया कि उनके ताऊ सरदार भगत सिंह जब लाहौर जेल में बंद थे। 24 मार्च 1931 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई जानी थी। तीन मार्च 1931 को उनके पिता कुलतार सिंह और परिवार के अन्य लोग भगत सिंह से मुलाकात करने जेल गए थे। तब कुलतार सिंह की उम्र महज 12 साल थी। मुलाकात के दौरान उनकी आंखों में आंसू आ गए थे, जिसे देख सरदार भगत सिंह ने साहस भी बंधाया था। इसके बाद ही उन्होंने छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम अंतिम पत्र भेजा था।
लाहौर में बांटे गए पम्फलेट की प्रति भी सुरक्षित
किरणजीत सिंह संधू ने बताया कि असेंबली में बम फेंकने की घटना के बाद जब सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लाहौर जेल में डाल दिया गया था, तब उन्होंने बंदियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की मांग को लेकर जेल में 114 दिन तक भूख हड़ताल की थी। 1929 में लाहौर में राष्ट्रभक्तों ने पम्फलेट छपवाकर बांटे थे, उसमें सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की तस्वीर भी लगाई थी। उस पम्फलेट की प्रति आज भी उनके पास मौजूद है।
यह भी पढ़ें: सहारनपुर में पिलर की आड़ में जोरों पर अवैध खनन, एक अफसर का वीडियो वायरल, जानें पूरा अपडेट
अंतिम पत्र में लिखी लाइनें
अजीज कुलतार, तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर दुख हुआ। हौसले से रहना, शिक्षा ग्रहण करना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और क्या कहूं। इसके बाद उन्होंने पत्र में चार शेर लिखे और अंत में लिखा... खुश रहो अहले वतन हम तो सफा करते हैं... तुम्हारा भाई भगत सिंह।
पत्र में लिखे शेर
उसे फिक्र है हरदम नया तर्जे जफा क्या है
हमें ये शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है।
दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें
सारा जहां अदू सही आओ मुकाबला करें।
कोई दम का महमा हूं अहले महफिल
चिराग ए शहर हूं बुझना चाहता हूं।
मेरी हवा में रहेगी ख्याल की बिजली
ये मुश्त ए खाक है फानी रहे ना रहे।
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‘उसे फिक्र है हरदम नया तर्जे जफा क्या है, हमें ये शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है’। यह वो शेर है जो शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह ने सेंट्रल जेल लाहौर से अपने छोटे भाई कुलतार सिंह को अंतिम पत्र में लिखा था। उर्दू में लिखे उस पत्र में भगत सिंह ने चार शेर लिखे थे, जिनमें साहस और राष्ट्रप्रेम का संदेश भी दिया था।
सरदार भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह का परिवार सहारनपुर में जैन कॉलेज रोड पर प्रद्युम्ननगर में रहता है। कुलतार सिंह का निधन हो चुका है, अब उनके पुत्र किरणजीत सिंह संधू यहां रहते हैं। सरदार भगत सिंह द्वारा सेंट्रल जेल लाहौर से भेजे उस पत्र की प्रति को आज भी वह सहेजकर रखे हुए हैं। शहीद भगत सिंह की मां विद्यावती भी 1960 के बाद करीब 10 साल तक सहारनपुर में ही रही थीं।
किरणजीत सिंह संधू ने बताया कि उनके ताऊ सरदार भगत सिंह जब लाहौर जेल में बंद थे। 24 मार्च 1931 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई जानी थी। तीन मार्च 1931 को उनके पिता कुलतार सिंह और परिवार के अन्य लोग भगत सिंह से मुलाकात करने जेल गए थे। तब कुलतार सिंह की उम्र महज 12 साल थी। मुलाकात के दौरान उनकी आंखों में आंसू आ गए थे, जिसे देख सरदार भगत सिंह ने साहस भी बंधाया था। इसके बाद ही उन्होंने छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम अंतिम पत्र भेजा था।
लाहौर में बांटे गए पम्फलेट की प्रति भी सुरक्षित
किरणजीत सिंह संधू ने बताया कि असेंबली में बम फेंकने की घटना के बाद जब सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लाहौर जेल में डाल दिया गया था, तब उन्होंने बंदियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की मांग को लेकर जेल में 114 दिन तक भूख हड़ताल की थी। 1929 में लाहौर में राष्ट्रभक्तों ने पम्फलेट छपवाकर बांटे थे, उसमें सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की तस्वीर भी लगाई थी। उस पम्फलेट की प्रति आज भी उनके पास मौजूद है।
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अंतिम पत्र में लिखी लाइनें
अजीज कुलतार, तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर दुख हुआ। हौसले से रहना, शिक्षा ग्रहण करना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और क्या कहूं। इसके बाद उन्होंने पत्र में चार शेर लिखे और अंत में लिखा... खुश रहो अहले वतन हम तो सफा करते हैं... तुम्हारा भाई भगत सिंह।
पत्र में लिखे शेर
उसे फिक्र है हरदम नया तर्जे जफा क्या है
हमें ये शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है।
दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें
सारा जहां अदू सही आओ मुकाबला करें।
कोई दम का महमा हूं अहले महफिल
चिराग ए शहर हूं बुझना चाहता हूं।
मेरी हवा में रहेगी ख्याल की बिजली
ये मुश्त ए खाक है फानी रहे ना रहे।
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