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डोनाल्ड ट्रंप अमेरीका के राष्ट्रपति हैं। यानी दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स। उनके विरोधी अक्सर ये कहते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के पास राष्ट्रपति के तौर पर जो ताकत है उसका कभी भी बेजा इस्तेमाल हो
सकता है। अमेरीका के राष्ट्रपति होने की वजह से वो अमेरीकी फौज के सुप्रीम कमांडर हैं। इस हैसियत से डोनाल्ड ट्रंप को शपथ ग्रहण वाले दिन यानी बीस जनवरी को प्लास्टिक का एक कार्ड सौंपा गया
था। ये कोई सामान्य कार्ड नहीं था। ये अमेरीका की एटमी मिसाइलों का लॉन्च कोड था। इस कार्ड के होने की वजह से डोनाल्ड ट्रंप जब चाहे अमेरीका की हजारों एटमी मिसाइलों में से कुछ को लॉन्च करने
का आदेश दे सकते हैं।
ये मिसाइलें इतनी ताकतवर हैं कि पलक झपकते ही मानवता को धरती से मिटा सकती है। दुनिया में सिर्फ अमेरीका ही नहीं है जिसके पास एटमी हथियार हैं। कहा जाता है कि दुनिया में 9 देशों के
पास न्यूक्लियर बम और मिसाइलें हैं। भारत इन देशों में से एक है। तो आखिर एटमी मिसाइल लॉन्च कैसे की जाती हैं? बीबीसी के रेडियो कार्यक्रम, 'द इन्क्वायरी' में रूथ एलेक्ज़ेंडर ने इस बार इसी
सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की। अमेरीका का राष्ट्रपति यूं ही नहीं दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स कहा जाता है। आज उसके पास सबसे ज्यादा एटमी हथियार हैं, जिनकी तादाद हजारों में है।
ये एटमी हथियार बम और मिसाइलों के तौर पर पनडुब्बियों से लेकर पहाड़ों के नीचे तक खुफिया तौर पर तैनात किए गए हैं। राष्ट्रपति का एक इशारा हुआ नहीं कि एक मिनट के अंदर मिसाइल अपने
निशाने की तरफ रवाना की जा सकती है। ब्रूस ब्ला अमेरीका के पूर्व मिसाइल लॉन्च अधिकारी हैं। वो सत्तर के दशक में अमेरीका के खुफिया एटमी मिसाइल ठिकानों पर काम कर चुके हैं। ब्रूस कहते हैं
कि उन लोगों को मिनटमेन कहा जाता था। वो इसलिए क्योंकि आदेश मिलने पर वो एक मिनट के अंदर न्यूक्लियर मिसाइल लॉन्च कर सकते थे।
ब्रूस और उनके साथियों की ड्यूटी हर वक्त कंप्यूटर मॉनिटर की निगरानी की होती थी। जिस पर कभी भी मिसाइल लॉन्च करने का आदेश आ सकता था। अमेरीका में सिर्फ राष्ट्रपति को ही एटमी हमला
करने का आदेश देने का अधिकार है। वो किसी और देश से अमेरीका पर हमला होने पर या हमले की आशंका होने पर एटमी मिसाइल लॉन्च करने का आदेश दे सकता है। जानकार बताते हैं कि रूस या
चीन अगर मिसाइल से अमेरीका पर हमला करते हैं तो वहां से अमेरीका तक मिसाइल पहुंचने में सिर्फ आधे घंटे लगेंगे। वहीं अगर दुश्मन ने पनडुब्बी से हमला किया तो सिर्फ पंद्रह मिनट में अमेरीका
को निशाना बनाया जा सकता है। ऐसे में अमेरीकी राष्ट्रपति के पास एटमी हमला करने का फैसला करने के लिए बेहद कम वक्त मिलेगा। इसीलिए अमरीकी राष्ट्रपति के साथ हमेशा एक चमड़े का
ब्रीफकेस चलता है। इस ब्रीफकेस को न्यूक्लियर फुटबॉल कहते हैं। इसमें वो मशीनें होती हैं जिनके जरिए अमेरीकी राष्ट्रपति स्ट्रैटेजिक कमांड के प्रमुख और उप-राष्ट्रपति समेत कुछ खास लोगों से बात
कर सकते हैं। ताकि एटमी हमले का फैसला ले सकें। ब्रूस ब्ला बताते हैं कि इस ब्रीफकेस में कार्टून की किताब सरीखा एक पेज भी होता है जिसमें एटमी मिसाइलों की ताकत और उनके असर का ब्यौरा
रहता है।
राष्ट्रपति कुछ सेकेंड के अंदर मिसाइलों के असर का आकलन करके एटमी हमले का फैसला ले सकते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति को एटमी मिसाइल दागने का आदेश देने के लिए मिसाइल लॉन्च ऑफिसर
को अपनी पहचान साबित करनी होगी। इस काम में वो प्लास्टिक कार्ड काम आता है जो हमेशा राष्ट्रपति के पास होता है। इसे अक्सर बिस्कुट कहकर पुकारा जाता है। यही वो कार्ड होता है जो किसी
अमेरीकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स बनाता है। क्योंकि इसी की मदद से वो एटमी हमले का आदेश दे सकता है। राष्ट्रपति को हमेशा ये कार्ड अपने साथ रखना होता है।
ब्रूस ब्ला बताते हैं कि अस्सी के दशक में राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने ये कार्ड या बिस्कुट अपने सूट के साथ ड्राई क्लीनिंग के लिए दे दिया था। राष्ट्रपति से आदेश मिलने के बाद मिनटमैन, यानी जमीन पर
तैनात एटमी मिसाइल से हमला करने वाले या फिर पनडुब्बी में तैनात मिसाइलों को लॉन्च कोड से खोला जाता है और हमले के लिए तैयार किया जाता है। ब्रूस ब्ला बताते हैं कि उनके पूरे करियर में एक
बार ऐसा हुआ था जब लगा था कि न्यूक्लियर वॉर छिड़ जाएगा। ये बात 1973 की है। अरब और इसराइल के बीच जंग छिड़ी हुई थी। उसी दौरान ब्रूस और उनके साथ तैनात टिमोथी को एलर्ट रहने का
आदेश मिला। ये डेफकॉन 3 संदेश था।
इसका मतलब था कि संभावित एटमी जंग के लिए तैयारी शुरू करो। किसी भी वक्त न्यूक्लियर मिसाइल लॉन्च करने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है जो अपने-अपने कोड बताते हैं। एक तरह से ये
दोनों लोग मिसाइल लॉन्च की चाभी होते हैं। ब्रूस उन दिनों को याद करके बताते हैं कि उन्हें लगा कि सोवियत संघ से हमला होने वाला है। इसीलिए वो मिसाइल का लॉन्च कोड और चाभी लेकर कुर्सी
पर बैठ गए। उन्हें और टिमोथी को मिसाइल लॉन्च के आखिरी फरमान का इंतजार था। राहत की बात रही कि वो कभी नहीं आया। इससे पहले भी साथ के दशक में क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान
अमरीका और सोवियत संघ एटमी जंग के बेहद करीब पहुंच गए थे।
सवाल ये है कि अगर कोई अमेरीकी राष्ट्रपति सनक जाए और बिना वजह ही एटमी हमला करने का आदेश दे दे तो क्या होगा? ब्रूस ब्ला कहते हैं कि ऐसा होने की सूरत में ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ
कमेटी के प्रमुख इस आदेश को मानने से इनकार कर सकते हैं। लेकिन ऐसा होने की उम्मीद बेहद कम है। क्योंकि राष्ट्रपति के मातहत काम करने वाले ऐसे लोगों को आदेश मानने की ट्रेनिंग दी
जाती है, हुकुमउदूली की नहीं। इसलिए अगर कोई राष्ट्रपति बहककर एटमी हमले का आदेश जारी करता है, तो यकीन जानिए फिर उसे रोक पाना बहुत मुश्किल है। इगोर सर्चेगेन एटमी हथियारों के
जानकार हैं।
इगोर रूस के रहने वाले हैं और कभी वहां की सरकार के लिए काम करते थे। 1999 में उन पर देश की खुफिया जानकारियां दुश्मनों को देने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया था। करीब 11 साल
जेल में रहने के बाद रूस ने उन्हें रिहा किया। जिसके बाद वो लंदन में बस गए। इन दिनों इगोर, लंदन के एक थिंक टैंक के लिए काम करते हैं। अमेरीका की तरह रूस भी बड़ी एटमी ताकत है। रूस के पास
भी हजारों न्यूक्लिर मिसाइलें हैं। इन्हें लॉन्च करने का अधिकार रूस के राष्ट्रपति के पास होता है। इगोर सर्चेगेन बताते हैं कि अमरीका की तरह रूस के राष्ट्रपति के पास भी एटमी कोड वाला ब्रीफकेस होता
है। ये ब्रीफकेस हमेशा राष्ट्रपति के आस-पास होता है।
रूस पर किसी हमले की सूरत में इस ब्रीफकेस का अलार्म बज उठता है। फ्लैशलाइट जल जाती हैं। जिससे राष्ट्रपति को फौरन ब्रीफकेस के पास पहुंचकर प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री से संपर्क साधना होता है।
रूस के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के पास भी ऐसे ही ब्रीफकेस होते हैं। लेकिन एटमी हमले का आदेश सिर्फ रूस के राष्ट्रपति दे सकते हैं। रूस के राष्ट्रपति अपने ब्रीफकेस के जरिए ही सेना के कमांडरों
और प्रधानमंत्री-रक्षा मंत्री से बात कर सकते हैं। उन्हें इसके लिए किसी टेलीफोन या दूसरे जरिए की जरूरत नहीं होगी। इगोर बताते हैं रूस के राष्ट्रपति का एटमी हमला करने वाला ये ब्रीफकेस सिर्फ एक
बार खोला गया है।
25 जनवरी 1995 को रूस के राष्ट्रपति के इस ब्रीफ़केस का अलार्म बज उठा था। इसकी लाइट फ्लैश होने लगी थी। इसका दूसरा अलार्म जो रूस के राष्ट्रपति की डेस्क पर होता है वो भी बज उठा था। पता
चला था की बैरेंट्स सी के पास रूस की सीमा के पास एक मिसाइल देखी गई है, जो तेजी से रूस की तरफ बढ़ रही है। बोरिस येल्तसिन ने एटमी हमले के लिए अपना ब्रीफकेस ऑन किया। वो हमले का
आदेश देने से पहले प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री से मशविरा कर रहे थे। इसके लिए उनके पास पांच से दस मिनट का ही वक्त था। रूस की पनडुब्बियों को एटमी हमले की तैयारी का आदेश दे दिया गया था।
हालांकि बाद में पता चला कि वो नॉर्वे का एक रॉकेट था जो वैज्ञानिक मिशन पर जा रहा था। रूस पर हमले का अलार्म इसी रॉकेट को रूस की तरफ आती मिसाइल समझकर बज गया था। रूस में
मिसाइल लॉन्च की तैयारी की पड़ताल के लिए अक्सर ड्रिल की जाती है। इगोर बताते हैं कि कई बार मिसाइल की निगरानी करने वालों को गलत लॉन्च कोड देकर हमले की तैयारी के लिए कहा जाता है।
ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि परखा जा सके कि असल जंग छिड़ने की सूरत में वो कहीं एटमी हमला करने से हिचकिचाएंगे तो नहीं। यानी रूस का भी सिस्टम ऐसा है कि अगर वहां के राष्ट्रपति ने
एटमी हमले का आदेश दिया तो न्यूक्लियर वॉर छिड़ना तय है।
डोनाल्ड ट्रंप अमेरीका के राष्ट्रपति हैं। यानी दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स। उनके विरोधी अक्सर ये कहते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के पास राष्ट्रपति के तौर पर जो ताकत है उसका कभी भी बेजा इस्तेमाल हो
सकता है। अमेरीका के राष्ट्रपति होने की वजह से वो अमेरीकी फौज के सुप्रीम कमांडर हैं। इस हैसियत से डोनाल्ड ट्रंप को शपथ ग्रहण वाले दिन यानी बीस जनवरी को प्लास्टिक का एक कार्ड सौंपा गया
था। ये कोई सामान्य कार्ड नहीं था। ये अमेरीका की एटमी मिसाइलों का लॉन्च कोड था। इस कार्ड के होने की वजह से डोनाल्ड ट्रंप जब चाहे अमेरीका की हजारों एटमी मिसाइलों में से कुछ को लॉन्च करने
का आदेश दे सकते हैं।
ये मिसाइलें इतनी ताकतवर हैं कि पलक झपकते ही मानवता को धरती से मिटा सकती है। दुनिया में सिर्फ अमेरीका ही नहीं है जिसके पास एटमी हथियार हैं। कहा जाता है कि दुनिया में 9 देशों के
पास न्यूक्लियर बम और मिसाइलें हैं। भारत इन देशों में से एक है। तो आखिर एटमी मिसाइल लॉन्च कैसे की जाती हैं? बीबीसी के रेडियो कार्यक्रम, 'द इन्क्वायरी' में रूथ एलेक्ज़ेंडर ने इस बार इसी
सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की। अमेरीका का राष्ट्रपति यूं ही नहीं दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स कहा जाता है। आज उसके पास सबसे ज्यादा एटमी हथियार हैं, जिनकी तादाद हजारों में है।
ये एटमी हथियार बम और मिसाइलों के तौर पर पनडुब्बियों से लेकर पहाड़ों के नीचे तक खुफिया तौर पर तैनात किए गए हैं। राष्ट्रपति का एक इशारा हुआ नहीं कि एक मिनट के अंदर मिसाइल अपने
निशाने की तरफ रवाना की जा सकती है। ब्रूस ब्ला अमेरीका के पूर्व मिसाइल लॉन्च अधिकारी हैं। वो सत्तर के दशक में अमेरीका के खुफिया एटमी मिसाइल ठिकानों पर काम कर चुके हैं। ब्रूस कहते हैं
कि उन लोगों को मिनटमेन कहा जाता था। वो इसलिए क्योंकि आदेश मिलने पर वो एक मिनट के अंदर न्यूक्लियर मिसाइल लॉन्च कर सकते थे।
Nuclear missile
ब्रूस और उनके साथियों की ड्यूटी हर वक्त कंप्यूटर मॉनिटर की निगरानी की होती थी। जिस पर कभी भी मिसाइल लॉन्च करने का आदेश आ सकता था। अमेरीका में सिर्फ राष्ट्रपति को ही एटमी हमला
करने का आदेश देने का अधिकार है। वो किसी और देश से अमेरीका पर हमला होने पर या हमले की आशंका होने पर एटमी मिसाइल लॉन्च करने का आदेश दे सकता है। जानकार बताते हैं कि रूस या
चीन अगर मिसाइल से अमेरीका पर हमला करते हैं तो वहां से अमेरीका तक मिसाइल पहुंचने में सिर्फ आधे घंटे लगेंगे। वहीं अगर दुश्मन ने पनडुब्बी से हमला किया तो सिर्फ पंद्रह मिनट में अमेरीका
को निशाना बनाया जा सकता है। ऐसे में अमेरीकी राष्ट्रपति के पास एटमी हमला करने का फैसला करने के लिए बेहद कम वक्त मिलेगा। इसीलिए अमरीकी राष्ट्रपति के साथ हमेशा एक चमड़े का
ब्रीफकेस चलता है। इस ब्रीफकेस को न्यूक्लियर फुटबॉल कहते हैं। इसमें वो मशीनें होती हैं जिनके जरिए अमेरीकी राष्ट्रपति स्ट्रैटेजिक कमांड के प्रमुख और उप-राष्ट्रपति समेत कुछ खास लोगों से बात
कर सकते हैं। ताकि एटमी हमले का फैसला ले सकें। ब्रूस ब्ला बताते हैं कि इस ब्रीफकेस में कार्टून की किताब सरीखा एक पेज भी होता है जिसमें एटमी मिसाइलों की ताकत और उनके असर का ब्यौरा
रहता है।
राष्ट्रपति कुछ सेकेंड के अंदर मिसाइलों के असर का आकलन करके एटमी हमले का फैसला ले सकते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति को एटमी मिसाइल दागने का आदेश देने के लिए मिसाइल लॉन्च ऑफिसर
को अपनी पहचान साबित करनी होगी। इस काम में वो प्लास्टिक कार्ड काम आता है जो हमेशा राष्ट्रपति के पास होता है। इसे अक्सर बिस्कुट कहकर पुकारा जाता है। यही वो कार्ड होता है जो किसी
अमेरीकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स बनाता है। क्योंकि इसी की मदद से वो एटमी हमले का आदेश दे सकता है। राष्ट्रपति को हमेशा ये कार्ड अपने साथ रखना होता है।
ब्रूस ब्ला बताते हैं कि अस्सी के दशक में राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने ये कार्ड या बिस्कुट अपने सूट के साथ ड्राई क्लीनिंग के लिए दे दिया था। राष्ट्रपति से आदेश मिलने के बाद मिनटमैन, यानी जमीन पर
तैनात एटमी मिसाइल से हमला करने वाले या फिर पनडुब्बी में तैनात मिसाइलों को लॉन्च कोड से खोला जाता है और हमले के लिए तैयार किया जाता है। ब्रूस ब्ला बताते हैं कि उनके पूरे करियर में एक
बार ऐसा हुआ था जब लगा था कि न्यूक्लियर वॉर छिड़ जाएगा। ये बात 1973 की है। अरब और इसराइल के बीच जंग छिड़ी हुई थी। उसी दौरान ब्रूस और उनके साथ तैनात टिमोथी को एलर्ट रहने का
आदेश मिला। ये डेफकॉन 3 संदेश था।
Briefcase with atomic code
इसका मतलब था कि संभावित एटमी जंग के लिए तैयारी शुरू करो। किसी भी वक्त न्यूक्लियर मिसाइल लॉन्च करने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है जो अपने-अपने कोड बताते हैं। एक तरह से ये
दोनों लोग मिसाइल लॉन्च की चाभी होते हैं। ब्रूस उन दिनों को याद करके बताते हैं कि उन्हें लगा कि सोवियत संघ से हमला होने वाला है। इसीलिए वो मिसाइल का लॉन्च कोड और चाभी लेकर कुर्सी
पर बैठ गए। उन्हें और टिमोथी को मिसाइल लॉन्च के आखिरी फरमान का इंतजार था। राहत की बात रही कि वो कभी नहीं आया। इससे पहले भी साथ के दशक में क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान
अमरीका और सोवियत संघ एटमी जंग के बेहद करीब पहुंच गए थे।
सवाल ये है कि अगर कोई अमेरीकी राष्ट्रपति सनक जाए और बिना वजह ही एटमी हमला करने का आदेश दे दे तो क्या होगा? ब्रूस ब्ला कहते हैं कि ऐसा होने की सूरत में ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ
कमेटी के प्रमुख इस आदेश को मानने से इनकार कर सकते हैं। लेकिन ऐसा होने की उम्मीद बेहद कम है। क्योंकि राष्ट्रपति के मातहत काम करने वाले ऐसे लोगों को आदेश मानने की ट्रेनिंग दी
जाती है, हुकुमउदूली की नहीं। इसलिए अगर कोई राष्ट्रपति बहककर एटमी हमले का आदेश जारी करता है, तो यकीन जानिए फिर उसे रोक पाना बहुत मुश्किल है। इगोर सर्चेगेन एटमी हथियारों के
जानकार हैं।
इगोर रूस के रहने वाले हैं और कभी वहां की सरकार के लिए काम करते थे। 1999 में उन पर देश की खुफिया जानकारियां दुश्मनों को देने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया था। करीब 11 साल
जेल में रहने के बाद रूस ने उन्हें रिहा किया। जिसके बाद वो लंदन में बस गए। इन दिनों इगोर, लंदन के एक थिंक टैंक के लिए काम करते हैं। अमेरीका की तरह रूस भी बड़ी एटमी ताकत है। रूस के पास
भी हजारों न्यूक्लिर मिसाइलें हैं। इन्हें लॉन्च करने का अधिकार रूस के राष्ट्रपति के पास होता है। इगोर सर्चेगेन बताते हैं कि अमरीका की तरह रूस के राष्ट्रपति के पास भी एटमी कोड वाला ब्रीफकेस होता
है। ये ब्रीफकेस हमेशा राष्ट्रपति के आस-पास होता है।
Boris Yeltsin
रूस पर किसी हमले की सूरत में इस ब्रीफकेस का अलार्म बज उठता है। फ्लैशलाइट जल जाती हैं। जिससे राष्ट्रपति को फौरन ब्रीफकेस के पास पहुंचकर प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री से संपर्क साधना होता है।
रूस के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के पास भी ऐसे ही ब्रीफकेस होते हैं। लेकिन एटमी हमले का आदेश सिर्फ रूस के राष्ट्रपति दे सकते हैं। रूस के राष्ट्रपति अपने ब्रीफकेस के जरिए ही सेना के कमांडरों
और प्रधानमंत्री-रक्षा मंत्री से बात कर सकते हैं। उन्हें इसके लिए किसी टेलीफोन या दूसरे जरिए की जरूरत नहीं होगी। इगोर बताते हैं रूस के राष्ट्रपति का एटमी हमला करने वाला ये ब्रीफकेस सिर्फ एक
बार खोला गया है।
25 जनवरी 1995 को रूस के राष्ट्रपति के इस ब्रीफ़केस का अलार्म बज उठा था। इसकी लाइट फ्लैश होने लगी थी। इसका दूसरा अलार्म जो रूस के राष्ट्रपति की डेस्क पर होता है वो भी बज उठा था। पता
चला था की बैरेंट्स सी के पास रूस की सीमा के पास एक मिसाइल देखी गई है, जो तेजी से रूस की तरफ बढ़ रही है। बोरिस येल्तसिन ने एटमी हमले के लिए अपना ब्रीफकेस ऑन किया। वो हमले का
आदेश देने से पहले प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री से मशविरा कर रहे थे। इसके लिए उनके पास पांच से दस मिनट का ही वक्त था। रूस की पनडुब्बियों को एटमी हमले की तैयारी का आदेश दे दिया गया था।
हालांकि बाद में पता चला कि वो नॉर्वे का एक रॉकेट था जो वैज्ञानिक मिशन पर जा रहा था। रूस पर हमले का अलार्म इसी रॉकेट को रूस की तरफ आती मिसाइल समझकर बज गया था। रूस में
मिसाइल लॉन्च की तैयारी की पड़ताल के लिए अक्सर ड्रिल की जाती है। इगोर बताते हैं कि कई बार मिसाइल की निगरानी करने वालों को गलत लॉन्च कोड देकर हमले की तैयारी के लिए कहा जाता है।
ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि परखा जा सके कि असल जंग छिड़ने की सूरत में वो कहीं एटमी हमला करने से हिचकिचाएंगे तो नहीं। यानी रूस का भी सिस्टम ऐसा है कि अगर वहां के राष्ट्रपति ने
एटमी हमले का आदेश दिया तो न्यूक्लियर वॉर छिड़ना तय है।