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नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरूनी विवाद में चीन ने फिर खुली दखल दी है। इसको लेकर देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। काठमांडू स्थित चीन की राजदूत हाओ यांकी के हस्तक्षेप का ये नतीजा हुआ कि सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के सचिवालय की बुधवार को वो अहम बैठक हुई, जिसे बुलाने से एक दिन पहले तक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इनकार कर रहे थे।
मंगलवार को ओली ने साफ शब्दों में इस बैठक में अपने शामिल होने की संभावना से इनकार कर दिया था। लेकिन उसी शाम चीनी राजदूत उनसे मिलीं। बुधवार को हुई बैठक में ओली शामिल हुए। सचिवालय की बैठक में ये फैसला हुआ कि इसकी अगली बैठक 28 नवंबर को होगी। बैठक एक घंटा चली। इसमें ये भी फैसला हुआ कि 28 नवंबर को जब अगली बैठक होगी, तो उसमें ओली अपना अलग राजनीति दस्तावेज पेश करेंगे।
कम्युनिस्ट पार्टी के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ने बुधवार को बैठक बुलाई थी। जब ओली अचानक इसमें पहुंचे, तो यहां के राजनीतिक पर्यवेक्षक दंग रह गए। ये बैठक हो या नहीं, इसको लेकर ओली और दहल में काफी समय से खींचतान चल रही थी। बताया जाता है कि इस मामले में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की भूमिका भी विवादित रही है।
मंगलवार को जब ओली ने बैठक में जाने से इनकार किया और मांग की कि इस बैठक के लिए दहल गुट ने जो राजनीतिक दस्तावेज बनाया है उसे वो वापस लें, तो भंडारी भी सक्रिय हो गईं। उन्होंने दहल को राष्ट्रपति निवास बुलाया और लंबी बातचीत की। नेपाल में राष्ट्रपति का पद गैर-राजनीतिक माना जाता है। इसलिए पार्टी के अंदरूनी मामलों में भंडारी की भूमिका पर यहां सवाल उठाए जा रहे हैं।
लेकिन असल विवाद चीनी राजदूत की भूमिका को लेकर खड़ा हुआ है। ये पहला मौका नहीं है, जब हाओ यांकी ने ऐसी भूमिका निभाई है। पिछली जुलाई में भी उन्होंने यहां सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के साथ कई बैठकें की थीं। उस समय नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में गहरा संकट खड़ा हो गया था।
तब पार्टी की स्थायी समिति के 44 में से 30 सदस्यों ने प्रधानमंत्री ओली से इस्तीफे की मांग कर दी थी। तब हाओ यांकी कई नेताओं से मिलीं, जिनमें राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी भी थीं। तब माना गया था कि हाओ यांकी के हस्तक्षेप की वजह से ही ओली सरकार बच सकी।
पिछले 21 अक्टूबर को भारत के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख सामंत गोयल ओली से मिले थे। उसी रात हाओ यांकी ने भी ओली से मुलाकात की थी। विपक्षी नेपाली कांग्रेस ने चीनी राजदूत की इस भूमिका की कड़ी आलोचना की है।
पार्टी के नेता और पूर्व विदेश मंत्री प्रकाश शरण महत ने यहां के अखबार काठमांडू पोस्ट से बातचीत में कहा कि ऐसी मुलाकातों से न सिर्फ राष्ट्रीय संप्रभुता की अनदेखी होती है, बल्कि इससे दूसरी बड़ी ताकतों को यहां प्रतिद्वंद्विता करने का मौका भी मिलता है। उन्होंने कहा कि जब एक देश को अंदरूनी मामले में ऐसा रोल निभाने दिया जाता है, तो दूसरे देश भी यहां अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुट जाते हैं। उन्होंने कहा कि ओली सरकार की विदेश नीति ना तो संतुलित है, ना इसमें निरंतरता है और ना ही इसमें बारीकियों का ख्याल रखा जाता है।
सार
- चीनी राजदूत से मिलने के बाद पार्टी की बैठक में शामिल हो गए प्रधानमंत्री ओली
- बैठक को लेकर ओली और दहाल में लंबे समय से चल रही थी खींचतान
- दहल ने पेश किया राजनीतिक प्रस्ताव, अब 28 की बैठक में ओली पेश करेंगे अपना अलग प्रस्ताव
विस्तार
नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरूनी विवाद में चीन ने फिर खुली दखल दी है। इसको लेकर देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। काठमांडू स्थित चीन की राजदूत हाओ यांकी के हस्तक्षेप का ये नतीजा हुआ कि सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के सचिवालय की बुधवार को वो अहम बैठक हुई, जिसे बुलाने से एक दिन पहले तक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इनकार कर रहे थे।
मंगलवार को ओली ने साफ शब्दों में इस बैठक में अपने शामिल होने की संभावना से इनकार कर दिया था। लेकिन उसी शाम चीनी राजदूत उनसे मिलीं। बुधवार को हुई बैठक में ओली शामिल हुए। सचिवालय की बैठक में ये फैसला हुआ कि इसकी अगली बैठक 28 नवंबर को होगी। बैठक एक घंटा चली। इसमें ये भी फैसला हुआ कि 28 नवंबर को जब अगली बैठक होगी, तो उसमें ओली अपना अलग राजनीति दस्तावेज पेश करेंगे।
कम्युनिस्ट पार्टी के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ने बुधवार को बैठक बुलाई थी। जब ओली अचानक इसमें पहुंचे, तो यहां के राजनीतिक पर्यवेक्षक दंग रह गए। ये बैठक हो या नहीं, इसको लेकर ओली और दहल में काफी समय से खींचतान चल रही थी। बताया जाता है कि इस मामले में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की भूमिका भी विवादित रही है।
मंगलवार को जब ओली ने बैठक में जाने से इनकार किया और मांग की कि इस बैठक के लिए दहल गुट ने जो राजनीतिक दस्तावेज बनाया है उसे वो वापस लें, तो भंडारी भी सक्रिय हो गईं। उन्होंने दहल को राष्ट्रपति निवास बुलाया और लंबी बातचीत की। नेपाल में राष्ट्रपति का पद गैर-राजनीतिक माना जाता है। इसलिए पार्टी के अंदरूनी मामलों में भंडारी की भूमिका पर यहां सवाल उठाए जा रहे हैं।
लेकिन असल विवाद चीनी राजदूत की भूमिका को लेकर खड़ा हुआ है। ये पहला मौका नहीं है, जब हाओ यांकी ने ऐसी भूमिका निभाई है। पिछली जुलाई में भी उन्होंने यहां सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के साथ कई बैठकें की थीं। उस समय नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में गहरा संकट खड़ा हो गया था।
तब पार्टी की स्थायी समिति के 44 में से 30 सदस्यों ने प्रधानमंत्री ओली से इस्तीफे की मांग कर दी थी। तब हाओ यांकी कई नेताओं से मिलीं, जिनमें राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी भी थीं। तब माना गया था कि हाओ यांकी के हस्तक्षेप की वजह से ही ओली सरकार बच सकी।
पिछले 21 अक्टूबर को भारत के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख सामंत गोयल ओली से मिले थे। उसी रात हाओ यांकी ने भी ओली से मुलाकात की थी। विपक्षी नेपाली कांग्रेस ने चीनी राजदूत की इस भूमिका की कड़ी आलोचना की है।
पार्टी के नेता और पूर्व विदेश मंत्री प्रकाश शरण महत ने यहां के अखबार काठमांडू पोस्ट से बातचीत में कहा कि ऐसी मुलाकातों से न सिर्फ राष्ट्रीय संप्रभुता की अनदेखी होती है, बल्कि इससे दूसरी बड़ी ताकतों को यहां प्रतिद्वंद्विता करने का मौका भी मिलता है। उन्होंने कहा कि जब एक देश को अंदरूनी मामले में ऐसा रोल निभाने दिया जाता है, तो दूसरे देश भी यहां अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुट जाते हैं। उन्होंने कहा कि ओली सरकार की विदेश नीति ना तो संतुलित है, ना इसमें निरंतरता है और ना ही इसमें बारीकियों का ख्याल रखा जाता है।