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चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने 26 जुलाई के अपने एक लेख में अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी देशों पर निशाना साधा है। अखबार लिखता है, "पश्चिम में कुछ ऐसी ताकतें हैं जो चीन और भारत के बीच सैन्य झड़प को भड़काने की कोशिश कर रही हैं। इसमें उनका कोई खर्च नहीं होने जा रहा है और झगड़े की सूरत में फायदा उठाया जा सकता है। अमेरिका ने यही तरीका साउथ चाइना सी के विवाद में अपनाया था।" ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में अमेरिका के अलावा पूर्व सोवियत संघ का नाम लेकर जिक्र किया गया है।
अखबार लिखता है, "ये ध्यान दिलाना जरूरी है कि 50 साल पहले भारत और चीन के बीच हुई लड़ाई में अमेरिका और सोवियत संघ की अदृश्य भूमिकाएं थीं। भारत को अतीत से सबक लेना चाहिए।" अखबार ने एक बार फिर से भारत और चीन की आर्थिक हैसियत की तुलना करते हुए कहा है, "चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, भारत का करीबी पड़ोसी भी है। चीन के साथ लड़ाई से केवल भारत को आर्थिक विकास के अवसरों से हाथ धोना पड़ सकता है।" इसके साथ ही ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की एक रिपोर्ट में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कसीदे गढ़े गए हैं।
26 जुलाई को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक सक्रिय विदेश नीति पर चल रहा है। उसने विदेशी निवेश की नीति में सुधार किया है और घरेलू उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक जाने के लिए हौंसला भी बढ़ाया है।" दोनों रिपोर्टों से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका की आलोचना और मोदी की तारीफ के साथ भारत को संकेत देने की कोशिश की जा रही है।
शिन्हुआ की रिपोर्ट कहती है, "चीन और भारत दुनिया के दो सबसे बड़े बाजार हैं। उनके बीच कारोबार सहयोग और खुली कारोबार नीति की पैरवी से निश्चित रूप से मुक्त विश्व व्यापार को बढ़ावा देने में योगदान हो सकता है। इससे संरक्षणवाद का मुकाबला भी किया जा सकता है।"
न्यूज एजेंसी ने भारत में चीनी राजदूत के हवाले से लिखा है, "भारत की मौजूदा आर्थिक सुधार प्रक्रिया और खुले बाजार की नीति बेहद आकर्षक है। वे मेड इन इंडिया को लेकर रणनीतिक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं।" अखबार के अनुसार चीन और भारत दोनों ही देश युद्ध नहीं चाहते। चीन ने अपने ज्यादातर सीमा विवाद अपने पड़ोसियों से बातचीत के जरिए सुलझाए हैं। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन को लेकर ग्लोबल टाइम्स उदार नहीं दिखता है।
अखबार लिखता है, "भारत-अमेरिका संबंधों में बेहतरी लाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने ज्यादा कुछ नहीं किया है। यहां तक कि कारोबार और अप्रवासन के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच मतभेद भी बना हुआ है।" लेकिन भारत और चीन के बीच उन मुद्दों का खास तौर पर जिक्र किया गया है जिन पर दोनों देशों के बीच सहमति है। उनकी रिपोर्ट कहती है, दोनों विकासशील देश कई मुद्दों पर एक जैसे विचार रखते हैं। उदाहरण के लिए भारत ग्रीन इकोनॉमी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता फिर से दोहराई है। वह पेरिस जलवायु समझौते का चैम्पियन है, लेकिन अमेरिका इससे मुकर गया है।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने 26 जुलाई के अपने एक लेख में अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी देशों पर निशाना साधा है। अखबार लिखता है, "पश्चिम में कुछ ऐसी ताकतें हैं जो चीन और भारत के बीच सैन्य झड़प को भड़काने की कोशिश कर रही हैं। इसमें उनका कोई खर्च नहीं होने जा रहा है और झगड़े की सूरत में फायदा उठाया जा सकता है। अमेरिका ने यही तरीका साउथ चाइना सी के विवाद में अपनाया था।" ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में अमेरिका के अलावा पूर्व सोवियत संघ का नाम लेकर जिक्र किया गया है।
अखबार लिखता है, "ये ध्यान दिलाना जरूरी है कि 50 साल पहले भारत और चीन के बीच हुई लड़ाई में अमेरिका और सोवियत संघ की अदृश्य भूमिकाएं थीं। भारत को अतीत से सबक लेना चाहिए।" अखबार ने एक बार फिर से भारत और चीन की आर्थिक हैसियत की तुलना करते हुए कहा है, "चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, भारत का करीबी पड़ोसी भी है। चीन के साथ लड़ाई से केवल भारत को आर्थिक विकास के अवसरों से हाथ धोना पड़ सकता है।" इसके साथ ही ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की एक रिपोर्ट में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कसीदे गढ़े गए हैं।
26 जुलाई को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक सक्रिय विदेश नीति पर चल रहा है। उसने विदेशी निवेश की नीति में सुधार किया है और घरेलू उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक जाने के लिए हौंसला भी बढ़ाया है।" दोनों रिपोर्टों से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका की आलोचना और मोदी की तारीफ के साथ भारत को संकेत देने की कोशिश की जा रही है।
pm modi
- फोटो : reuter
शिन्हुआ की रिपोर्ट कहती है, "चीन और भारत दुनिया के दो सबसे बड़े बाजार हैं। उनके बीच कारोबार सहयोग और खुली कारोबार नीति की पैरवी से निश्चित रूप से मुक्त विश्व व्यापार को बढ़ावा देने में योगदान हो सकता है। इससे संरक्षणवाद का मुकाबला भी किया जा सकता है।"
न्यूज एजेंसी ने भारत में चीनी राजदूत के हवाले से लिखा है, "भारत की मौजूदा आर्थिक सुधार प्रक्रिया और खुले बाजार की नीति बेहद आकर्षक है। वे मेड इन इंडिया को लेकर रणनीतिक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं।" अखबार के अनुसार चीन और भारत दोनों ही देश युद्ध नहीं चाहते। चीन ने अपने ज्यादातर सीमा विवाद अपने पड़ोसियों से बातचीत के जरिए सुलझाए हैं। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन को लेकर ग्लोबल टाइम्स उदार नहीं दिखता है।
अखबार लिखता है, "भारत-अमेरिका संबंधों में बेहतरी लाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने ज्यादा कुछ नहीं किया है। यहां तक कि कारोबार और अप्रवासन के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच मतभेद भी बना हुआ है।" लेकिन भारत और चीन के बीच उन मुद्दों का खास तौर पर जिक्र किया गया है जिन पर दोनों देशों के बीच सहमति है। उनकी रिपोर्ट कहती है, दोनों विकासशील देश कई मुद्दों पर एक जैसे विचार रखते हैं। उदाहरण के लिए भारत ग्रीन इकोनॉमी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता फिर से दोहराई है। वह पेरिस जलवायु समझौते का चैम्पियन है, लेकिन अमेरिका इससे मुकर गया है।